Thursday, October 11, 2012

नींद




नींद, गयी  कहीं,
लो फिर उड़ गयी,
पेड़ के पत्तों पर,
ठंडी हवा में
खुद ही सो गयी ।

ढूंडा मैंने हर जगह
कम्बल के अन्दर,
बिस्तर के नीचे,
कही नहीं मिली,
गुम ही हो गयी ।

खुद गयी, ले गयी
चैन मेरा,
सपने भी गए,
कमबख्त क्यों वो,
उनको भी ले गयी ।

रात, अँधेरी काली
और ये तन्हाई
और कुछ यादें,
ये ही मेरी साथी,
अब तो हो गयी ।

Friday, October 5, 2012

कोई कह दे,


कोई  कह  दे ,
कि  शाम हो गयी है ,
नींद से अब  तो,
बोझल  है आँखें ।

टुकड़ा टुकड़ा ज़िन्दगी  का
साथ  लेके , चले  थे हम
ना तो टुकडे , ना  ही ज़िन्दगी 
अब  कही  बाकी  है ।

कोई  कह  दे,
कि शाम हो गयी है,
कि दर्द से अब  तो,
काहिल है आहें ।

खेल खिलोने, झूले
वो  लहराती, लहलहाती 
मुस्कुराती आशाएँ,
अब  कहाँ बाकी है ।

कोई  कह  दे,
कि शाम हो गयी है
शाम ज़िन्दगी की,
अरमान यही बाकी है ।

कभी देखे थे,
मैंने भी सपने,
कि पहुँचू वहाँ,
वो जो आसमां अभी बाकी है ।

कोई  कह  दे,
कि शाम हो गयी है ।