कोई कह दे ,
कि शाम हो गयी है ,
नींद से अब तो,
बोझल है आँखें ।
टुकड़ा टुकड़ा ज़िन्दगी का
साथ लेके , चले थे हम
ना तो टुकडे , ना ही ज़िन्दगी
अब कही बाकी है ।
कोई कह दे,
कि शाम हो गयी है,
कि दर्द से अब तो,
काहिल है आहें ।
खेल खिलोने, झूले
वो लहराती, लहलहाती
मुस्कुराती आशाएँ,
अब कहाँ बाकी है ।
कोई कह दे,
कि शाम हो गयी है
शाम ज़िन्दगी की,
अरमान यही बाकी है ।
कभी देखे थे,
मैंने भी सपने,
कि पहुँचू वहाँ,
वो जो आसमां अभी बाकी है ।
कोई कह दे,
कि शाम हो गयी है ।
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